हिन्दी के प्रसिद्ध कवि, पत्रकार और गीतकार। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर करने के बाद स्वतंत्र भारत, दैनिक जागरण और हिन्दुस्तान में 33 वर्षों तक पत्रकारिता की। उनकी कविताएँ, ग़ज़लें और गीत संसद से लेकर दूरदर्शन व आकाशवाणी तक गूँजे। ‘कोई तो बात उठे’ और ‘अंत नहीं यह…’ जैसे संग्रह प्रकाशित हुए। उत्तर प्रदेश की गणतंत्र दिवस झाँकियों के लिए लिखे उनके गीतों को राष्ट्रीय स्तर पर सर्वाधिक सराहना और पुरस्कार प्राप्त हुए।
"रचना से राष्ट्र की पहचान"
"गीतों से संस्कृति का सम्मान"
Discover moments from Virendra Vats’ literary events, awards, and performances in photos and videos.




From TV interviews to viral performances, Virendra Vats’s powerful words continue to capture hearts and headlines alike.
Discover how the media celebrates his poetic journey and voice that inspires millions.
आज धरा के भाग्य खुले हैं
पावन बेला आई
रामलला ने जन्म लिया है
घर-घर बजे बधाई
यहां कुंभ की छटा देखकर
दुनिया जय-जय बोले
नए उद्यमों ने विकास के
नए रास्ते खोले
छंटी धुंध उत्तर प्रदेश की
नई रोशनी छाई
नई रोशनी छाई...
- वीरेन्द्र वत्स
वीरेन्द्र वत्स की लेखनी में जीवन के हर पहलू की झलक मिलती है —
देशप्रेम से लेकर प्रेम की कोमल भावनाओं तक, हर रचना दिल को छू जाती है।
उनकी कविताएँ और ग़ज़लें समाज, संवेदना और सच्चाई का सुंदर संगम हैं।
तू जीत के लिए बना
प्रचंड अग्निज्वाल हो
अपार शैलमाल हो
तू डर नहीं सिहर नहीं
तू राह में ठहर नहीं
ललाट यह रहे तना
तू जीत के लिए बना
तू जोश से भुजा चढ़ा
तू होश से कदम बढ़ा
यह देश
जिसका गर्वोन्नत शीश युगों तक था भू पर
लहरायी जिसकी कीर्ति सितारों को छूकर
जिसके वैभव का गान सृष्टि की लय में था
जिसकी विभूतियाँ देख विश्व विस्मय में था
जिसके दर्शन की प्यास लिये पश्चिम वाले
आये गिरि-गह्वर-सिन्धु लाँघकर मतवाले
वह देश वही भारत उसको क्या हुआ आज?
सोने की चिड़िया निगल गया हा! कौन बाज?..
लोकतंत्र पर दोहे
घर के भेदी बुन रहे षडयंत्रों का जाल
लोकतंत्र ही बन गया लोकतंत्र का कालसना हुआ है रक्त से भारत माँ का भाल
लोकतंत्र ही बन गया लोकतंत्र का कालटुच्चे नेता राष्ट्र की पगड़ी रहे उछाल
लोकतंत्र ही बन गया लोकतंत्र का कालजाति-धर्म की रार में जीना हुआ मुहाल
लोकतंत्र ही बन गया लोकतंत्र का काल…